March 27, 2024
MPS 003 Solved Assignment 2022-23

MPS 003 Solved Assignment 2022-23

MPS 003 Solved Assignment 2022-23

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MPS 003 solved assignment यह Assignment Ignou University से MA Political Science Course कर रहे Students का है | अगर आप MPS 1st Year के student है और MPS 003 solved Assignment 2022-23 Session का सर्च कर रहे हैं तो यह पोस्ट आप की मदद करेंगा | MPS 001 से लेकर MPS 004 तक के solved Assignment के लिए इस पोस्ट को पढ़े | यहाँ हम MPS 003 Solved Assignment 2022-23 hindi medium में देखेंगे |

Course Name / Course Tittle – (MPS) Master Of Arts Political Science
Subject Name / Course Tittle – India: Democracy and Development

Subject Code / Course Code – MPS 003
Medium Of Study – Hindi / English
Session – July 2022 – Jan 2023 (2022-2023) 
Last Date of submission – 30 May For July 2022 Session & 15 November For Jan 2023 Session

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MPS 003 Solved Assignment 2022-23 in hindi

प्रश्न 3. भारतीय लोकतंत्र में 73 वें और 74 वे संवैधानिक संशोधन के महत्व की चर्चा कीजिए |
उत्तर –
भूमिका – स्थानीय स्वशासन का विचार भारत में प्राचीन काल में भी विद्यमान था | किंतु वर्तमान संगठन एवं कार्यप्रणाली के रूप में इसका प्रादुर्भाव ब्रिटिश शासन के अंतर्गत हुआ | आधुनिक भारत के इतिहास में स्थानीय सरकारों को स्थापित करने का श्रेय लॉर्ड रिपन को जाता है | लेकिन यह कहना अनुपयुक्त न होगा कि 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ-साथ स्थानीय शासन को राज्य की कार्यसूची के अंतर्गत रखा और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया कि “राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह ग्राम पंचायतों का इस ढंग से संगठन करें कि वे स्थानीय स्वशासन की इकाईयों के रूप में कार्य कर सकें |” 1957 में श्री बलवंतराय मेहता समिति के सिफारिश पर 2 अक्टूबर 1959 को भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले में इसका विधिवत उद्घाटन कर ग्रामीण विकास के पहले चरण का सूत्रपात किया | इसके बावजूद यह संस्थाएं देश में अपनी जड़े ठीक से नहीं जमा सकी | जनता सरकार ने इन संस्थाओं के कायाकल्प हेतु अशोक मेहता समिति नियुक्त की | परंतु 73 वें व 74 वें संशोधन ने, जो 1992 में पास हुए और अप्रैल 1994 में लागू हुए, स्थानीय स्वशासन की धारणा- ग्रामीण व शहरी दोनों- का उन्हें संवैधानिक दर्जा देकर वस्तुतः कायापलट कर दिया | यह संशोधन भारत में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के अनुभव के आलोक में पारित किए गए | इन्होंने इन संस्थाओं के सामने सीमाबद्धता से पार पाने के लिए गंभीर प्रयास किए |
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73 वां संशोधन का महत्व

73 वा संशोधन अधिनियम एक त्रि – पंक्ति पंचायती राज व्यवस्था मुहैया कराता है- ग्राम, माध्यमिक (खंड अथवा तालुका) तथा जिला स्तर | 20 लाख से कम आबादी वाले छोटे राज्यों को माध्यमिक स्तर पर पंचायत गठित करने या ना करने की छूट दी गई है | इस अधिनियम ने ग्रामीण लोगों के सशक्तिकरण में ग्राम सभा (जनसाधारण की सभा) की भूमिका को स्वीकार और पंचायत राज संस्थाओं के सफलतापूर्वक कार्य – संपादन के लिए ग्राम सभाओं को मजबूत किए जाने की व्यवस्था दी | इस अधिनियम का अभिप्राय इसे एक सशक्त निकाय बनाना था, यथा लोकतांत्रिक शक्ति का चरम स्त्रोत और ग्राम पंचायत स्तर
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पर जनशक्ति का निचोड़ | ग्राम सभा में एक गांव के सभी निवासी होते हैं, और जो 18 वर्ष की आयु से बड़े होते हैं गांव के चुनाव संबंधी सूचियों में  होते हैं | लगभग सभी राज्य अधिनियम ग्राम सभा के प्रकार्यों का उल्लेख करते हैं | ग्राम सभा के इन प्रकार्यों में शामिल है – वार्षिक लेखा विवरण, प्रशासन, सरकारी बयान, दरिद्रता- विरोध कार्यक्रमों के लाभग्राहयों का चुनाव आदि विषयक चर्चा | हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु के राज्य अधिनियम ग्राम सभा को बजट स्वीकृति का अधिकार प्रदान करते हैं |
 ग्राम सभा द्वारा एक ग्राम प्रधान चुना जाता है | वह ग्राम पंचायत के अन्य सदस्यों को भी चुनौती है | सदस्य – संख्या राज्य- राज्य में भिन्न-भिन्न होती है, और उनकी आबादी के अनुसार उनमें से कुछ स्थान अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं तथा कुल सीटों की एक – तिहाई संख्या महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है |
ग्राम पंचायत के अनिवार्य कार्यों में शामिल होते हैं – स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, सार्वजनिक कुओं, तालाबों, औषधालयो, प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों का रखरखाव आदि | अब ग्राम पंचायतों को विकासात्मक कार्य भी सौंपे  गए हैं, जैसे लघु सिंचाई योजनाएं, ग्रामीण विद्युतीकरण, कुटीर और लघु उद्योग तथा दरिद्रता उन्मूलन कार्यक्रम |
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खंड स्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को देश के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है | गुजरात में उन्हें तालुका पंचायत कहा जाता है, उत्तर प्रदेश में क्षेत्रत्र समिति और मध्य प्रदेश में उन्हें जनपद पंचायत कहा जाता है | इनमें शामिल है : (1) पंचायतों के सरपंच, (2) उस क्षेत्रत्र के संसद सदस्य, विधायक व पार्षद जिला परिषद, (3) जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्य, तथा (4) उस क्षेत्र की नगर क्षेत्र समिति का अध्यक्ष |
पंचायत समिति की शक्तियों में शामिल है – बीजों व उवर्करों की उन्नत किस्मों का प्रावधान, स्कूलों, अस्पतालों का रखरखाव, दरिद्रता – विरोधी कार्यक्रम लागू करना और ग्राम पंचायतों के कार्यप्रणाली की देखरेख करना | जिला परिषद की पंचायती राज संस्थाओं का शीर्ष निकाय है | यह पंचायत समितियों की गतिविधियों का समन्वय करती है | इसमें होते हैं – जिले की पंचायत समितियों के प्रधान, जिले से निर्वाचित सांसद व विधायकगण, जिले की प्रत्येक सहकारी समिति से एक-एक प्रतिनिधि और जिले की नगरपालिकाओं का अध्यक्ष भी |  जिला परिषद पंचायत समितियों के बजट स्वीकृति करती है | वह शैक्षणिक संस्थाओं, सिंचाई परियोजनाओं का रखरखाव करती है और कमजोर तबकों के लिए कार्यक्रम चलाती है |

74 वा संशोधन का महत्व

74 वां संशोधन अधिनियम शहरी क्षेत्रों में तीन प्रकार की स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के गठन हेतु व्यवस्था देता है | यह दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, प्रयागराज, लखनऊ, पटना आदि जैसे प्रमुख शहरों के लिए नगर निगमों की व्यवस्था करता है | मध्यम श्रेणी के शहर नगर परिषदें तथा अपेक्षाकृत छोटे कस्बे नगर पंचायतें रखते हैं | प्रत्येक नगर निगम में एक महापरिषद होती है | इसमें शहर के व्यस्त नागरिकों द्वारा निर्वाचित सदस्य होते हैं | इन सदस्यों को पार्षद कहा जाता है | निर्वाचित सदस्यों के अलावा, परिषद में निर्वाचित पार्षदों द्वारा चुने गए वृद्ध जन भी होते हैं | सांसद व विधायक भी इसके सदस्य होते हैं | महापौर सदस्यों द्वारा स्वयं के पीछे चुना जाता है | कुछ राज्य महापौर के सीधे चुनाव की व्यवस्था करते हैं | उसे शहर के प्रथम नागरिक के रूप में जाना जाता है | नगर निगम आयुक्त निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है | महापौर निगम आयुक्त को किसी भी विषय पर रिपोर्ट तैयार करने व प्रस्तुत करने को कह सकते हैं |
 नगर निगम के अनिवार्य कार्यों में शामिल है – अस्पतालों का रखरखाव, स्वच्छ पेयजल आपूर्ति, बिजली, स्कूल चलाना और जन्मों व मौतों का लेखा-जोखा रखना | नगर निगम के विकासात्मक प्रकारों में कमजोर वर्ग के लिए दरिद्रता उन्मूलन कार्यक्रम शुरू करना शामिल है | नगरपालिका स्थानीय जनता द्वारा निर्वाचित पार्षदों से मिलकर बनती है | अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए शहर में आबादी से उनके अनुपात के अनुसार सीटों का आरक्षण होता है और सीटों का एक – तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होता है | नगर निगम बोर्ड का पीठासीन अधिकारी अध्यक्ष कहलाता है जो शहर के मतदाताओं
द्वारा चुना जाता है | कुछ राज्यों में नगर निगम बोर्ड का अध्यक्ष प्राथमिक स्कूल अध्यापकों और निचले स्तर के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार भी रखता है | एक कार्यकारी अधिकारी नगरपालिका के दिन प्रतिदिन के प्रशासन को देखता है | अनिवार्य कार्यों में आते हैं- बिजली, पेयजल , स्वास्थ्य सुविधाएं, और सड़कों का रकरखाव करना तथा समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण करना | छोटे शहर नगर पंचायतें रखते हैं | इसके सदस्य शहर के व्यस्क नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं | जैसा कि अन्य स्थानीय स्वशासी संस्थाएं में है, अनुसूचित जातियों व जनजातियों तथा महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित है | उनके कार्यों में शामिल है – पेयजल की व्यवस्था, प्राथमिक विद्यालयों का रख-रखाव तथा जन्मों व मौतों का पंजीकरण |
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निष्कर्ष :- यह कहा जा सकता है कि 73 वें व 74 वें संशोधन ने देश में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण एवं स्थानीय स्वशासन के क्रम- विकास में उल्लेखनीय विकास को न सिर्फ नया जन्म दिया है बल्कि उसका कायाकल्प भी किया है | उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उनके लिए कुछ निश्चित सीटों के आरक्षण की व्यवस्था दी है | इस संशोधनों द्वारा किए गए हितकार परिवर्तनों के बावजूद, जैसा कि अनुभव दर्शाता है, इन संस्थाओं को अब तक अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है | देशभर में उनका कार्य- प्रदर्शन एक-सा नहीं है | बुलंद स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के लिए जो आवश्यक है वह राज्य सरकार की सशक्त राजनीतिक इच्छा और नौकरशाही से सहयोग है | उन्हें सफल बनाने के लिए लोगों की ओर से भी एक दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है |

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